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Wednesday, February 4, 2015

आम आदमी के मायने

मेरे विचारो को किसी पार्टी के प्रति झुकाव के रूप में नहीं लिए जाएं । ये विचार सामजिक और राजनीतिक प्रकिया के चलते दिखाई दे रही परिस्थितियों के कारण हैं । ये विचार एक सशक्त लोकतंत्र वाले देश के बारे में है जहाँ आम आदमी निम्न स्तर का होते हुए भी बहुत कुछ कर सकने के सपने देख सकता है । लोकतंत्र हर एक क्षण शासक को यहयाद  दिलाता रहता है कि वो वहां क्यों हैं और किसकी वजह से है , साथ ही साथ उसका वहां होना सीमित अवधि के लिए ही है ।
जैसा कि देश की राजनीतिक माहौल की बात करें भाजपा एक अलग स्तर पर अपना हाथ सत्ता पर रखी हुई है और अधिकांश हिस्से भाजपा की पकड़ से बाहर नहीं रहे हैं ।  कश्मीर जैसे मुश्किल राज्य में भी असर छोड़ने में भी ये कामयाब रही है । अब आती है दिल्ली की बात … एक केंद्र शासित प्रदेश में सिमटी हुई एक पार्टी भाजपा जैसी बड़ी पार्टी को हराने का मद्दा रखती है । बात को थोड़ी अलग नज़रिये से देखें तो एक अलग शक्ति का एहसास होता है । और ये शक्ति है आम आदमी की ।
 आम आदमी पिस्ता है मेहनत करता है अपनी दो रोजी रोटी के लिए ....कुछ सालो में उसके शहर गाँव राज्य या देश के स्तर पर चुनाव होता है । इतने काम करने के बाद वो चाहता है कि मेरी कमाई सही हाथो में जाये । और इस बात पर अधिकांश सरकारें विफल रही हैं । विफलता के अनुरुूप आम आदमी परेशान होता रहा और उदास होता रहा । वो हमेशा इसी सोच में रहता कि नेतृत्व सजग रहे और काम चलता रहे । दिल्ली में जब एक पार्टी को देखता हूँ तो मनमें बात ज़रूर उठती है कि हमारे देश में"आम आदमी" की शक्ति अपार है । और अगर वो चाहे तो सही दिशा में उसे उपयोग कर भी सकता है ।
हो सकता है इसी शक्ति का उदहारण हमें दिल्ली में देखने को मिले और राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव हो ।