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Tuesday, June 7, 2011

माँ....

जब छोटा था , रोता था मैं ,
खुलकर हसना सिखाया तूने
जानता था सिर्फ आँखें झपकाना,
मगर देखना सिखाया तूने
चलता था घुटनों पे,
खड़े होकर चलना सिखाया तूने
कलम पकड़ते हाथ कांपते थे,
किताबें लिखना सिखाया तूने
मिटाना तो ज़रूर आता था,
मगर बनाना सिखाया तूने
ठंडी हवाएं भाँती थी,
आग में तपना सिखाया तूने
आज बड़ा हुआ हूँ लेकिन ,
और बड़ा देखना सिखाया तूने
जब छोटा था, रोता था मैं ,
खुलकर हसना सिखाया तूने

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