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Wednesday, June 22, 2011

भाई! ऐसा ना हो

बात है एक यात्रा की | गर्मियों की खून चूसने वाली गर्मी के साथ गर्म हवाओं के थपेड़े भी मौजूद थे | यात्रा चालू हुई एक ट्रेन के कोच में , जिसमे पंखे तो थे मगर बंद| मानो कह रहे हो कि जनाब गर्मी का असर आप पर ही नहीं हम पर भी है | सामने बूढ़े से व्यक्ति जो असल में थे तो 50 के आस पास मगर गर्मी ने अपना रंग यहाँ भी दिखाया|अच्छा भला कुछ पोत कर आये थे , सारी सच्चाई दिखा दी इस "कमबख्त" गर्मी ने | स्टेशन पर वही द्रश्य , ट्रॉली पर बिक रहे नमकीन, पसीने तर कर्मचारी चाय बेचते हुए और पास में एक लड़का अखबार बेचता हुआ | पास में बेठी एक आंटी जी ने एक चाय ली | मगर जैसे ही उन्होंने पैसे पूछे वे भड़क उठी | कहती थी " भईया ये चाय 5 की है छह की नहीं " | आधी गिलास तो पी चुकी अब वापस देने का नाम ही नहीं | पैसे पर यूँ लडती मानो यही एक रुपया उनकी जीविका है | मगर कुछ शांति ट्रेन के होर्न ने दिलाई , आंटी जी राज़ी नहीं हुई , बल्कि ये तो ट्रेन चलने का समय था | चाय बेचने वाले ने जल्दबाजी में कहा " अरे आंटी रखिये अपने एक रुपये ,मैं तो चला" | ट्रेन चालू हुई |
ऊपर की दोनों सीटें खाली थी , मैंने अपने आप से कहा "भाई इस passenger train में यात्रियों की उदारता देखते ही बनती है, आगे आने वाले यात्रियों के लिए इतनी सहानुभूति "| मगर यह मेरा भ्रम था , जैसे ही एक स्टेशन आया तो मैंने देखा की लोग ऊपर जाने की बजाए पैर रखने की जगह पे एक चादर बिछाये बेठने लगे |
मैंने पुछा "क्यूँ दादा? ऊपर जाओ ना " | दादा ने अपने माथे को पोछ्ते हुए कहा " बेटा , कोण इस गर्मी में मरना चाहो ? थारो इच्छा है तो तुम जावो |" मैंने उनकी यह बातें ऐसी सुनी मानो कोई कॉलेज में lecture दे रहा है |
खैर सामने वाली सीट पर दो पुलिस वाले आये और बैठ गये |
दोनों पुलिस वाले अपनी पुलिस में होने का प्रमाण दे रहे थे | निकली हुई तोंद , बड़ी हुई मूछ जैसे कान को छु रही हो , मूंह से सांस कम और गाली ज्यादा , भारी आवाज़| दोनों सामने थे अपने में कुछ गपशप कर रहे थे|
उस कोच में ना ही कोई दोस्त, ना साथ में किताब और ना ही आस पास कोई लड़की | अब समय कटे भी तो कैसे | मैंने सोचा चलो आज इनकी मुखवाणी ही सुनते हैं |
एक का नाम था सन्मुख और दुसरे का नाम हंसमुख | दोनों के बीच वार्तालाप कुछ ऐसी चली -;
सन्मुख- साले को मैंने पकड़ ही लिया था, वो तो पत्थर पर पैर पड़ गया और मैं गिर पड़ा |
हंसमुख- हाँ यार, साले का पता चला इस ट्रेन में, आगे तीन स्टेशन के बाद आने वाले नाके पे उतरता देखा है कुछ लोगो ने |
सन्मुख-साला इतना बड़ा हत्यारा है वो की उसके लिए shoot at site का आर्डर आया है ऊपर से|
हंसमुख-आज के बाद तो हमारा promotion पक्का|
सन्मुख-हाँ भाई जान लगा देंगे आज तो |
कुछ उन दोनों मैं धीरे से बात हुई, धीरे से क्या उनकी भारी आवाज़ ने साड़ी बातचीत मुझे सुना दी|
हंसमुख - सुन ध्यान से , आस पास बैठे लोगों का कोई विश्वास नहीं , क्या पता कोई भी उससे मिला हो , किसीसे कुछ ना कहना |
सन्मुख- यार तेरा दिमाग है बड़ा तेज़ | मान गये |
मुझे लगा आज कुछ ना कुछ होने वाला ही है |
कुछ दूर पर chain pulling हुई और ट्रेन रुकी | मेरी नींद जैसे तैसे आई और वो भी टूट गयी | मगर मुझे लगा खैर आस पास वाले तो जाग रहे होंगे | मगर सामने वाले दो पुलिस वाले मीठी नींद सो चुके थे| मुझे लगा इनका काम तो हो चूका | जरूर मैंने कुछ देखना "miss " कर दिया|
मगर जैसे ही मैंने खिड़की से बाहर देखा तो था वही नाका जिसके बारे में पहले पुलिस वालो ने कहा था | मैंने थोडा और झाँका तो एक बन्दा टोकरी लिए हुए कूद कूद के जा रहा था | मगर इस गर्मी में ऐसी मीठी नींद बड़े किस्मत वालो को ही नसीब होती है भईया ! मेरा तो उतरने का ठिकाना आ पड़ा था मगर दोनों को कहाँ पता | वो तो बेचारे ख्याली पुलाव बनाते बनाते थक गये |
भईया हम तो यहीं कहते हैं कि "भाई! ऐसा ना हो" |

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