A WORD OF CAUTION

YOU ARE NOT ALLOWED TO LEAVE THIS SITE BEFORE COMMENTING ON THE POST YOU HAVE READ. AND COMMENTS MUST BE PURE !

Monday, July 18, 2011

जन्मदिन मुबारक हो , मेरे ब्लॉग

आज मैं खुश हूँ क्योंकि आज मेरा ब्लॉग १ साल का हो चुका है | इस ब्लॉग ने कई उतार चड़ाव देखे , कई दिनों तक फ़ालतू बैठा हुआ मुझे बोलता रहता -भाई मुझसे काम ले | कभी कभी कुछ लिखते हुए विचारों पर पूर्णविराम लग जाता था तब इसने कहा -भाई कल जरूर पूरा करना | कल कल करते हुए कई कल बीत गये , उन विचारों को मैं एक सजावट नहीं दे पाया | मैंने हर बार ब्लॉग से समय की व्यस्तता की बहाने की ओड ली मगर समय गुजरते मेरे ब्लॉग पर एक अजीब शक्ति विकसित होती चली | ब्लॉग हमेशा मुझसे बोलता -भाई मैं सब जानता हूँ | उसकी भावनाओं को ज्यादा ठेस न पहुंचाते हुए मैंने कई विचारों को जीवन दिया |
ब्लॉग बनाने का विचार मेरे अंदर स्वतंत्र रूप में आया | मगर कुछ लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे दोस्त "मयंक शर्मा" ने दी | मैंने पहले पत्र में अपने ब्लॉग को पहचान देते हुए उसके मायिने घोषित किये | पहला पत्र अंग्रेजी में लिखा , और उसने कम सराहना पायी | पीछे न हटते हुए मैंने अपनी जीविका लिखी और फलस्वरूप मेरा ब्लॉग सुर्ख़ियों में छाने लगा | हर दोस्त मेरे ब्लॉग को पड़ता और उसे और अच्छा बनाने की प्रेरणा मुझे देते रहता | कुछ दिन के विश्राम के बाद मेरे ब्लॉग ने कुछ शक्ति अर्जित करते हुए 'माँ' की अमूल्य भावों पर रौशनी डाली और एक कविता लिखी | उस कविता में कुछ ऐसे भाव छुपे थे जो जनता को अश्रु-बहाने पर मजबूर कर देते|
फिर कुछ कवितायेँ और लिखी जैसे - पिता (२ कवितायेँ),एक शुष्क व्रक्ष | उसके कुछ दिनों बाद मैंने अपने अनुभव बांटना चाहे और इसमें मैं सक्षम हुआ | भाई ! ऐसा न हो - सराहनीय रहा और संतोष एवम एक मुलाकात को भी दूर-द्रष्टि मिलती रही | अब मैंने अपने ब्लॉग को नये मौड़ पर मुड़ने की कोशिश की है जिसमे में अंग्रेजी में लिखे गये "views on reshuffling of cabinet " शामिल है | आगे traffic पर मेरी एक रचना सामने आयेगी जो अंग्रेजी में होगी |
इस ब्लॉग को आगे बडाने में जनता का बहुत बड़ा हाथ रहा है | उनकी अलग अलग टिप्पणियां मेरे लिए मददगार साबित हुई हैं| और मैं चाहता हूँ कि मेरे कई पत्रों की गलतियाँ निकलने से भी वह पीछे नहीं हटे | मैं आशा करता हूँ की मेरा ब्लॉग जब बड़ा होगा तो कई मौड़ पर देखभाल कर मुड़ेगा और एक नई दिशा बनाने में सफल होगा |
चलिए यह बात तो हुई ब्लॉग की मगर इसके कर्ता धर्ता का क्या ? कुछ दिनों तक मेरा ध्यान या तो अच्छा ब्लॉग लिखने में या उसे सवारने में हुई | ब्लॉग को उचाईयों तक पहुँचाने की समझ मुझसे कोसों दूर थी | माँ की कविता लिखने के बाद मैंने कुछ साहस दिखाया , अलग अलग ब्लॉग पड़े , किताबें और बहुत कुछ किया जिससे मेरा ब्लॉग सुर्ख़ियों में बना रहे | आगे के कुछ दिनों में मेरे अंदर शैली और भाषा का प्रश्न उठने लगा | क्या मुझे हिंदी या कोई और भाषा का सहारा लेना चाहिए अपने विचारो को ढालने के लिए | यह प्रश्न अभी तक बना हुआ है | काश जल्दी मैं इसे हल कर पाऊं |

Tuesday, July 12, 2011

VIEWS ON RESHUFFLING OF CABINET !

Well the news is "congress has reshuffled the cabinet". Many political dramaticians are now on the post lower than the previous one they hold. And likely, many politicians were welcomed into new ministry.Many ups and downs were seen from the course of previous politicians,and the reason being their hard decisions or soft decisions(its difficult to say). That's the correct time for congress to change the cabinet minister (AS MY THINKING GOES).

Hard decisions were in the context of JAI RAM RAMESH , his decision about ADARSH society was a very harsh and hard decision. Now, in order to improve his image,P.M. manmohan singh was fully awared of th fact that "one highly devoted team would do the task".After his dramatic silence on BABA RAMDEV'S incidence , many fingers were up against him. To ruin all odds and to make them down, it was essential for him to form a base of a building. But when i saw the cabinet team, i found some lackness. All the cabinet ministers + newly appointed are the infrastructure of the new building whose base was given by our P.M. but where will be the development report ? To rub this lackness there must be an another commitee to look over this task. Which in itself is most important of all !

I was not amazed to see the decrement of JAI RAM RAMESH who gave teeth to ENVIROMENT MINISTRY. And jayanti natrajan replaced him. He was supposed to be not so harsh on his judgements.But not going into details, we would be expecting much from the newly appointed ministers to look after every events. Within the limits of their powers , they should accelerate the problem solving rate and should try to take all the vital issues into considerations. Hope is a flying balloon, even a faint particle who is against it ,it will destroy the hope.So, having a watch on all the odds they must go on!

Sunday, July 3, 2011

एक मुलाकात

आज दिनांक २-७-२०११ को एक अजीब शख्सियत से मिलने हुआ | सूरज की किरणों को भेदता हुआ उसका शरीर सामने मेरे सामने उपस्थित हुआ | मैंने उसे पहचानने की कोशिश की , बल्कि बहुत कोशिश की| मगर यह कोशिशें सारी नाकाम हुई | कुछ देर बाद पिताजी ने उनका परिचय दिया | परिचय सुनने के बाद ऐसा लगा मानो आँखें खुली होकर भी अभी तक कुछ नहीं देख पायी , धड़ स्व्तत कार्य करने के बाद भी कुछ पाने में नाकाम हुआ , फूलों की वर्षा के बाद अभी भी कांटे कांटे ही शरीर को चुभे | उस व्यक्तित्व से मेरा पुरानी जान-पहचान थी , शायद एक पुराना रिश्ता | उस रिश्ते की गाँठ परीक्षा के दिनों में मानो किसीने खोल दी और दो कपड़े अलग अलग हो गये | वो दो कपड़े किसी आंधी में अलग होकर अलग अलग किसी और कपड़ों से जुड़ गये |
उनसे रिश्ता था एक भाई की तरह , बड़ा भाई जो हमेशा मेरे लिए एक राय निकालकर रखता था| उनके साथ खाना खाया , अपनी पढ़ायी ,casio सीखना वगैरह काम करे | उनका घर मेरे लिए एक नया घर बन चुका था | उन दिनों में वे एक शांत , शरीफ ,स्वच्छ चित्त वाले पुरुष थे| वो कई परेशानियों का सामना कर चुके थे ,मगर एक नौकरी की तलाश उनकी तरफ से जारी थी | बस उनकी चिंता का कारण यही था |
आज फिर उन्ही "बाबा" से मिलना हुआ | रंग ,ढंग,चाल,ढाल सब में वह पिछड़ चुके थे | व्यावहारिक और आत्मिक संतुलन तो उनमे था , मगर बाहरी आवरण मार्मिक क्रियायों को किस तरह छिपाती हैं , यह मैंने इस दिन देखा| उस शख्स में बहुत सी बातें ऐसी थी जो छिपी हुई थी | इन बातों को हम खूबियों का दर्जा दे सकते हैं| अपने घर वालो से परेशान , और साफ़ बोलें तो घर वाली से परेशान था वह आदमी | मानसिक स्तिथी ठीक नहीं लगती थी मगर फिर भी उन्होंने अपने कुछ ढंगों से अपनी स्तिथी पर भी एक पारदर्शी पर्दा दाल दिया|
मैंने उनको अखबार दिया तो उन्होंने अंग्रेजी का अखबार माँगा, मैंने उन्हें प्रश्न भाव से अखबार लाकर दिया| मैंने उनकी अंग्रेजी को परखना चाहा और इसी चाह में मैंने उनसे कई शब्दों का उच्चारण पूछ डाला| मगर मजाल की एक भी गलत हो ,हर एक शब्द के साथ उसका अर्थ भी बताते जाते | इस तरह उनकी मानसिक स्तिथी का प्रश्न भी हल हो गया| यह जानकर ख़ुशी हुई कि "इस स्वार्थी दुनिया में जहाँ भाई तक अपना स्वार्थ निकालते हैं वहां ऐसा पुरुष जो हर तरफ से परेशानियों के पहाड़ से घिरा हुआ ,मगर एक नदी कि तरह उन पहाड़ों को काटते हुए वह अपना मार्ग निकल ही लेता है "| कुछ बातें करने के बाद उनका चलने का समय हुआ ,जाते वक़्त उनके आँखों में आंसू दिखे | मेरा यह दिन श्रेष्ठ दिनों कि उस श्रेणी में आता है जिसमे सीखना,प्यार और इस तरह के हर भाव शामिल थे | इन्ही घंटो को भुलाना नामुमकिन सा ही है |

Sunday, June 26, 2011

संतोष

यह व्रतांत तब का है जब मैं अपनी बिमारी दिखने डॉक्टर के पास गया था |
बात है एक उजाड़ मोहल्ले की | पूरा मोहल्ला मानो अपनी गरीबी का द्रश्य अपने रंग और पहनावे से दिखलाता हो| कोई 'बाई' फटी साड़ी पहनकर बर्तन मांजती मानो सोच रही हो की उनकी आजीविका इस पर ही निर्भर है,जो किसी हद तक सही भी है | वो 'बाई' अपनी मालकिन की हज़ार बेतुकी बातें (जिसमे आदेश के साथ गुस्सा भी मिला हुआ था) सुनते हुए अपना काम किये जा रही थी , मानो उस पर इन बातों का कोई असर नहीं हो रहा और यह भी स्पष्ट था कि इंसानियत का पाठ उसने अपनी मालकिन से ज्यादा पढ़ा है | फिर उस घर से नज़र मुड़ी तो ठहरी एक सब्जी बेचने वाले के घर में| उसने ठेला अपने घर के सामने रख छोड़ा था | ऐसा लगा कि मानो उसने अपनी दयनीय स्तिथि को समझाने के लिए बाहर रखा था | घर था या झोपड़ दोनों एक से ही लगते थे| उसका घर बाहरी ओर से पूरा खुला था| मगर वह अपनी कुछ आमदनी से इतना संतुष्ट था मानो की उसे अपना यह झोपड़ महल सा लगने लग गया है | ना उसके मूंह पर और आमदनी की ललक , ना ही उसमे कोई उम्मीद की झलक | अपने घर को वह महल समझ बैठा था , और बड़ी बड़ी बातों का भी पीछा नहीं छोड़ता| मैं उसके घर में कुछ और देखने की लालसा दिखाई , तो मैंने देखी एक अलमारी जो खुली तो हुई थी मगर उसमे थी ढेर साड़ी किताबें | और किताबें भी क्या थीं - ग़ालिब की शायरियाँ, प्रेमचंद की कर्मभूमि और बहुत कुछ |शायद उसके इस रंग रौवन का असर उसे किताबों से ही मिला है | ख़ैर, मैं परेशान था उस मोहल्ले में अपने डॉक्टर के नंबर को लेकर| एक तो नंबर जल्दी आने के बावजूद २८ मिला और डॉक्टर के आने में भी देरी हो गयी |
भीड़ में भी कई नमूने दिख ही जातें हैं | लम्बी लाइन में मेरे आगे खड़ा एक लड़का मजे से 'cigratte ' का छल्ला बनाते हुए गाने गा रहा था| मैंने उससे पुछा क्यों भाई क्या बिमारी है? तो उसने खा की भाई कुछ नहीं बस "lung infection ' हो गया है | भाई तेरा इलाज तेरे पास ही है | इलाज मालूम होते हुए भी डॉक्टर के पास २०० खर्च करने के लिए आ पड़ा| मालूम पड़ता था कि किसी अमीर बाप की औलाद है| इतने में उसका फ़ोन आया और अपनी कुछ बातें करने लगा | मैंने अपना ध्यान वहां से हटाया और कहीं और ताकता झांकता रहा |
कुछ देर बाद एक लम्बी सी कार आई | उसमे बेठे थे डॉक्टर साहब | जैसे ही उनकी गाड़ी रुकी तो उन्हें देखकर बहुत से लोग केबिन की तरफ भागे |उनका क्लिनिक बाहर से तो एक केबिन ही लग रहा था | मगर कुछ देर लाइन में लगने के बाद क्लिनिक एक कोम्पौंद क्लिनिक की तरह लगा | जिस मोहल्ले में लोग खाने पानी के लिए इतने कष्ट सहते हैं वहां इतना बड़ा क्लिनिक , ज़रूर यहाँ पर उनके लिए कुछ विशेष छूट होगी | कुछ देर बाद मेरा नंबर आया | लगा अब तो सीधे डॉक्टर के पास मगर जनाब ! अभी कहाँ ? अभी तो एक और लम्बी कतार बची थी | मेरे पास एक बुज़ुर्ग महिला आके बैठीं | उनके घुटने में fracture हो गया था | उनसे कुछ बात चीत चालू हुई ही थी डॉक्टर की बेल बजी और महिला उठ कर चल पड़ीं | डॉक्टर साहब की बेल उनकी समय के प्रति अनुशासन को झलकाता है | जो वास्तविकता में बिलकुल गलत है | खैर मैंने उन्हें अपनी बीमारी बताई और निकला वहां से| मगर जाते जाते जब उस उजाड़ पर निगाह पड़ी , तो फिर से कुछ लोग दिखाई पड़े |
सरकार की वास्तविकता यहाँ से झलकती है | जो सरकार मायनो को ना समझकर अपने दायित्वों से पीछे हटती है , उससे और क्या चाह सकते हैं |
मगर फिर भी जब ऐसी घटनायों का सामना होता है तो कुछ पंक्तियाँ मूंह से बाहर निकल ही जाती है , और मेरे मूंह से निकली -; भाई ! यह कैसी मदमस्त चाल?

Wednesday, June 22, 2011

भाई! ऐसा ना हो

बात है एक यात्रा की | गर्मियों की खून चूसने वाली गर्मी के साथ गर्म हवाओं के थपेड़े भी मौजूद थे | यात्रा चालू हुई एक ट्रेन के कोच में , जिसमे पंखे तो थे मगर बंद| मानो कह रहे हो कि जनाब गर्मी का असर आप पर ही नहीं हम पर भी है | सामने बूढ़े से व्यक्ति जो असल में थे तो 50 के आस पास मगर गर्मी ने अपना रंग यहाँ भी दिखाया|अच्छा भला कुछ पोत कर आये थे , सारी सच्चाई दिखा दी इस "कमबख्त" गर्मी ने | स्टेशन पर वही द्रश्य , ट्रॉली पर बिक रहे नमकीन, पसीने तर कर्मचारी चाय बेचते हुए और पास में एक लड़का अखबार बेचता हुआ | पास में बेठी एक आंटी जी ने एक चाय ली | मगर जैसे ही उन्होंने पैसे पूछे वे भड़क उठी | कहती थी " भईया ये चाय 5 की है छह की नहीं " | आधी गिलास तो पी चुकी अब वापस देने का नाम ही नहीं | पैसे पर यूँ लडती मानो यही एक रुपया उनकी जीविका है | मगर कुछ शांति ट्रेन के होर्न ने दिलाई , आंटी जी राज़ी नहीं हुई , बल्कि ये तो ट्रेन चलने का समय था | चाय बेचने वाले ने जल्दबाजी में कहा " अरे आंटी रखिये अपने एक रुपये ,मैं तो चला" | ट्रेन चालू हुई |
ऊपर की दोनों सीटें खाली थी , मैंने अपने आप से कहा "भाई इस passenger train में यात्रियों की उदारता देखते ही बनती है, आगे आने वाले यात्रियों के लिए इतनी सहानुभूति "| मगर यह मेरा भ्रम था , जैसे ही एक स्टेशन आया तो मैंने देखा की लोग ऊपर जाने की बजाए पैर रखने की जगह पे एक चादर बिछाये बेठने लगे |
मैंने पुछा "क्यूँ दादा? ऊपर जाओ ना " | दादा ने अपने माथे को पोछ्ते हुए कहा " बेटा , कोण इस गर्मी में मरना चाहो ? थारो इच्छा है तो तुम जावो |" मैंने उनकी यह बातें ऐसी सुनी मानो कोई कॉलेज में lecture दे रहा है |
खैर सामने वाली सीट पर दो पुलिस वाले आये और बैठ गये |
दोनों पुलिस वाले अपनी पुलिस में होने का प्रमाण दे रहे थे | निकली हुई तोंद , बड़ी हुई मूछ जैसे कान को छु रही हो , मूंह से सांस कम और गाली ज्यादा , भारी आवाज़| दोनों सामने थे अपने में कुछ गपशप कर रहे थे|
उस कोच में ना ही कोई दोस्त, ना साथ में किताब और ना ही आस पास कोई लड़की | अब समय कटे भी तो कैसे | मैंने सोचा चलो आज इनकी मुखवाणी ही सुनते हैं |
एक का नाम था सन्मुख और दुसरे का नाम हंसमुख | दोनों के बीच वार्तालाप कुछ ऐसी चली -;
सन्मुख- साले को मैंने पकड़ ही लिया था, वो तो पत्थर पर पैर पड़ गया और मैं गिर पड़ा |
हंसमुख- हाँ यार, साले का पता चला इस ट्रेन में, आगे तीन स्टेशन के बाद आने वाले नाके पे उतरता देखा है कुछ लोगो ने |
सन्मुख-साला इतना बड़ा हत्यारा है वो की उसके लिए shoot at site का आर्डर आया है ऊपर से|
हंसमुख-आज के बाद तो हमारा promotion पक्का|
सन्मुख-हाँ भाई जान लगा देंगे आज तो |
कुछ उन दोनों मैं धीरे से बात हुई, धीरे से क्या उनकी भारी आवाज़ ने साड़ी बातचीत मुझे सुना दी|
हंसमुख - सुन ध्यान से , आस पास बैठे लोगों का कोई विश्वास नहीं , क्या पता कोई भी उससे मिला हो , किसीसे कुछ ना कहना |
सन्मुख- यार तेरा दिमाग है बड़ा तेज़ | मान गये |
मुझे लगा आज कुछ ना कुछ होने वाला ही है |
कुछ दूर पर chain pulling हुई और ट्रेन रुकी | मेरी नींद जैसे तैसे आई और वो भी टूट गयी | मगर मुझे लगा खैर आस पास वाले तो जाग रहे होंगे | मगर सामने वाले दो पुलिस वाले मीठी नींद सो चुके थे| मुझे लगा इनका काम तो हो चूका | जरूर मैंने कुछ देखना "miss " कर दिया|
मगर जैसे ही मैंने खिड़की से बाहर देखा तो था वही नाका जिसके बारे में पहले पुलिस वालो ने कहा था | मैंने थोडा और झाँका तो एक बन्दा टोकरी लिए हुए कूद कूद के जा रहा था | मगर इस गर्मी में ऐसी मीठी नींद बड़े किस्मत वालो को ही नसीब होती है भईया ! मेरा तो उतरने का ठिकाना आ पड़ा था मगर दोनों को कहाँ पता | वो तो बेचारे ख्याली पुलाव बनाते बनाते थक गये |
भईया हम तो यहीं कहते हैं कि "भाई! ऐसा ना हो" |

एक शुष्क वृक्ष

एक वृक्ष
सूखा हुआ,
है खड़ा |

मानो है किसी
की ताक़ में,
खो चूका ,
अपना पता|

है खड़ा ,
इस चाह में ,
कोई आये और बनादे,
उसे उनके जैसा हरा भरा|

ये इच्छाएं ,
सिमटकर रह गयी,
जब देखी दूसरो की,
यह टालम टूली|

अब करना पड़ा ,
संतोष ,
जान पड़ा अपना,
पता,
और कहता बस मैं हूँ ,
एक सूखा सा घडा |

Sunday, June 19, 2011

पिता : एक संजीवनी

((१))
पिता ,
बच्चपन में तूने मुझे हाथों से सम्भाला ,
दिखाया तू जीवन में किस तरह ढला,
सिखाया किस तरह संघर्ष में जला,
बताया किस तरह सेवा में गला,
मेरे आंसुओं को तूने हाथों से मला,
संतोष करना सिखाया जो भी है मिला,
पिता ,
बच्चपन में तूने मुझे हाथो से सम्भाला|

((२))
पिता,
एक वट व्रक्ष सा,
जो है फैलाये,
कई अद्रश्य हाथ|

है पूजनीय,
ईश्वर के समान,
मेरे लिए हैं,
वे ही नाथ|

सिखाया,
सालो साल रहना,
अडिग,
अपने स्वत्व पर,
जिससे मिला मनोनितो का साथ ||

Tuesday, June 7, 2011

माँ....

जब छोटा था , रोता था मैं ,
खुलकर हसना सिखाया तूने
जानता था सिर्फ आँखें झपकाना,
मगर देखना सिखाया तूने
चलता था घुटनों पे,
खड़े होकर चलना सिखाया तूने
कलम पकड़ते हाथ कांपते थे,
किताबें लिखना सिखाया तूने
मिटाना तो ज़रूर आता था,
मगर बनाना सिखाया तूने
ठंडी हवाएं भाँती थी,
आग में तपना सिखाया तूने
आज बड़ा हुआ हूँ लेकिन ,
और बड़ा देखना सिखाया तूने
जब छोटा था, रोता था मैं ,
खुलकर हसना सिखाया तूने