आज दिनांक २-७-२०११ को एक अजीब शख्सियत से मिलने हुआ | सूरज की किरणों को भेदता हुआ उसका शरीर सामने मेरे सामने उपस्थित हुआ | मैंने उसे पहचानने की कोशिश की , बल्कि बहुत कोशिश की| मगर यह कोशिशें सारी नाकाम हुई | कुछ देर बाद पिताजी ने उनका परिचय दिया | परिचय सुनने के बाद ऐसा लगा मानो आँखें खुली होकर भी अभी तक कुछ नहीं देख पायी , धड़ स्व्तत कार्य करने के बाद भी कुछ पाने में नाकाम हुआ , फूलों की वर्षा के बाद अभी भी कांटे कांटे ही शरीर को चुभे | उस व्यक्तित्व से मेरा पुरानी जान-पहचान थी , शायद एक पुराना रिश्ता | उस रिश्ते की गाँठ परीक्षा के दिनों में मानो किसीने खोल दी और दो कपड़े अलग अलग हो गये | वो दो कपड़े किसी आंधी में अलग होकर अलग अलग किसी और कपड़ों से जुड़ गये |
उनसे रिश्ता था एक भाई की तरह , बड़ा भाई जो हमेशा मेरे लिए एक राय निकालकर रखता था| उनके साथ खाना खाया , अपनी पढ़ायी ,casio सीखना वगैरह काम करे | उनका घर मेरे लिए एक नया घर बन चुका था | उन दिनों में वे एक शांत , शरीफ ,स्वच्छ चित्त वाले पुरुष थे| वो कई परेशानियों का सामना कर चुके थे ,मगर एक नौकरी की तलाश उनकी तरफ से जारी थी | बस उनकी चिंता का कारण यही था |
आज फिर उन्ही "बाबा" से मिलना हुआ | रंग ,ढंग,चाल,ढाल सब में वह पिछड़ चुके थे | व्यावहारिक और आत्मिक संतुलन तो उनमे था , मगर बाहरी आवरण मार्मिक क्रियायों को किस तरह छिपाती हैं , यह मैंने इस दिन देखा| उस शख्स में बहुत सी बातें ऐसी थी जो छिपी हुई थी | इन बातों को हम खूबियों का दर्जा दे सकते हैं| अपने घर वालो से परेशान , और साफ़ बोलें तो घर वाली से परेशान था वह आदमी | मानसिक स्तिथी ठीक नहीं लगती थी मगर फिर भी उन्होंने अपने कुछ ढंगों से अपनी स्तिथी पर भी एक पारदर्शी पर्दा दाल दिया|
मैंने उनको अखबार दिया तो उन्होंने अंग्रेजी का अखबार माँगा, मैंने उन्हें प्रश्न भाव से अखबार लाकर दिया| मैंने उनकी अंग्रेजी को परखना चाहा और इसी चाह में मैंने उनसे कई शब्दों का उच्चारण पूछ डाला| मगर मजाल की एक भी गलत हो ,हर एक शब्द के साथ उसका अर्थ भी बताते जाते | इस तरह उनकी मानसिक स्तिथी का प्रश्न भी हल हो गया| यह जानकर ख़ुशी हुई कि "इस स्वार्थी दुनिया में जहाँ भाई तक अपना स्वार्थ निकालते हैं वहां ऐसा पुरुष जो हर तरफ से परेशानियों के पहाड़ से घिरा हुआ ,मगर एक नदी कि तरह उन पहाड़ों को काटते हुए वह अपना मार्ग निकल ही लेता है "| कुछ बातें करने के बाद उनका चलने का समय हुआ ,जाते वक़्त उनके आँखों में आंसू दिखे | मेरा यह दिन श्रेष्ठ दिनों कि उस श्रेणी में आता है जिसमे सीखना,प्यार और इस तरह के हर भाव शामिल थे | इन्ही घंटो को भुलाना नामुमकिन सा ही है |
अविजश,
ReplyDeleteआप लिखते अच्छा हो. पिछली पोस्ट भी पढी थी मगर कमेंट नहीं दे सके.
बहुत दूर जाने की वाकई जरुरत नहीं होती, जीवन को समझना, देखना और उससे कुछ सीखना, हमे अपने आसपास से ही मिल जाया करता है। आपमे जानने-समझने और उसे व्यक्त करने की वंशानुगत खूबी है, इस खूबी को और अधिक धार दें, यानी खूब लिखे, पढें...।
dhnyvaad chacha
ReplyDeletenice avi...
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